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मैं बाज़ार की कड़क धूप में जल्दी-जल्दी अपने काम निपटा रहा था। मेरी योजना थी कि मैं यहां से केवल दो जरूरी चीजें ले लूं और फिर वापस घर चला जाऊं। लेकिन ज़िन्दगी ने कुछ और ही नज़ारा पेश किया।
एक दुकान के बाहर, अचानक बारिश होने लगी। मुझे जल्दी से छाता खरीदना था। दुकानदार की तरफ देखा, उसने मुझे रंग-बिरंगे छाते दिखाए, सभी आकर्षक, लेकिन हर एक की कीमत अलग-अलग और जरा कम स्पष्ट भी लग रही थी। जल्दी में, मैंने एक छाता खरीद लिया, ठीक से बिना जांचे कि वह अच्छा है या नहीं।
खुशी-खुशी मैंने छाता खोला और चलते-चलते पता चला कि वह छाता ठीक से बंद नहीं हो रहा, और बारिश में मेरी फ्रेंडली मुलाकात जल्दी ही भीगने में बदल गई। मैं थोड़ा हँस पड़ा, राज़ ये था कि हड़बड़ी में लिया गया फैसला हमेशा सही नहीं होता।
वापस लौटते हुए, मैं सोच रहा था कि अगली बार मैं ऐसी खरीदारी में धैर्य रखूंगा, चाहे बारिश कितनी भी ज़ोरदार क्यों न हो। उस दिन मुझे यह सीखना पड़ा कि जल्दबाजी में की गई खरीदारी न केवल पैसों की बर्बादी हो सकती है, बल्कि अप्रिय अनुभव भी दे सकती है।
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